Pahalgam Terror Attack: Terrorism, Political Plot or Religious War?

Terrorist आए, निर्दोष लोगों को मारा, और बिना कोई सुराग छोड़े निकल गए — और हम बस सोचते रह गए।”
22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में हुआ ये हमला सिर्फ एक आतंकी घटना नहीं, बल्कि एक बड़ी साज़िश जैसा लगने लगा है।
26 मासूम लोगों की जान गई — ज्यादातर हिंदू पर्यटक, जो कश्मीर की खूबसूरती देखने आए थे।

-: सेना की वर्दी में आतंकी — धोखे की बड़ी चाल

हमलावर Indian Army की वर्दी पहनकर आए थे।
Indian Army की वर्दी इतनी आसानी से मिलती नहीं, खासकर active duty वालों की।
ऐसा करना इसलिए भी खतरनाक है क्योंकि इससे सुरक्षा एजेंसियों की विश्वसनीयता पर सवाल उठता है।
क्या किसी अंदरूनी अधिकारी ने मदद की? या वर्दी बाजार में उपलब्ध थी?
सेना की वर्दी पहनना ये दिखाता है कि ये हमला सिर्फ सीधे आतंकी हमले से कहीं ज्यादा calculated था।

-: LOC से 180 किलोमीटर तक घुसपैठ — रास्ता कितना खतरनाक?

Pahalgam LOC से लगभग 180 किलोमीटर दूर दक्षिण-पूर्व दिशा में है।
LOC यानी भारत-पाकिस्तान के बीच की heavily guarded border line है।
यहाँ से 180 किलोमीटर का सफर पहाड़ी इलाकों और dense जंगलों से होता हुआ गुजरता है।
CRPF, BSF, Indian Army के multiple checkpoints होते हैं, जो हर दिन गश्त करते हैं।
इतनी दूर तक बिना पकड़े पहुंचना, ये दिखाता है कि आतंकी या तो अंदरूनी मदद के बिना ये काम नहीं कर सकते।
या फिर हमारे intelligence agencies की बड़ी failure हुई।

-: KALMA पढ़ने को मजबूर करना — धार्मिक नरसंहार की तरफ इशारा

आतंकियों ने लोगों से कलिमा पढ़ने को कहा और जो नहीं पढ़ पाए उन्हें गोली मार दी।
ये सिर्फ आतंकवाद नहीं, बल्कि साफ़ religious targeting था।
इसने इस हमले को एक धार्मिक रंग दिया, जिससे पूरे देश में communal tension बढ़ सकती थी।
लेकिन सरकार और मीडिया ने इस religious angle को कम दिखाया, शायद राजनीतिक स्थिरता के लिए।
क्या सच को छुपाना सही है?

-: आतंकी अभी तक क्यों नहीं पकड़े गए?

इतने बड़े हमले के बाद हमलावर अभी तक फ्री घूम रहे हैं।
क्या वे पाकिस्तान वापस चले गए? या भारत के अंदर कहीं छुपे हुए हैं?
अगर वे बाहर चले गए तो हमारी border security पर बड़ा सवाल।
अगर भारत के अंदर छुपे हैं तो हमारी internal security पर बड़ा सवाल।
ये सवाल आम जनता के मन में शक पैदा करता है कि कहीं ये मामला दबाया तो नहीं जा रहा?

-: TRF का पहला दावा और फिर मना करना — मनोवैज्ञानिक युद्ध?

The Resistance Front (TRF) ने इस हमले की जिम्मेदारी ली, लेकिन बाद में इस बात से इनकार कर दिया।
यह विरोधाभास इस हमले के पीछे की असली वजह को और ज्यादा उलझा देता है।
क्या TRF सच में involved था? या ये एक तरह का psychological warfare था?
क्या इसे इस्तेमाल करके जनता को confuse किया गया?

-: चुनावों से पहले बड़े हमले — कोई coincidence नहीं?

2019 का पुलवामा हमला और 2025 का पहलगाम हमला दोनों चुनावों से पहले हुए।
ये सिर्फ संयोग नहीं लगते।
क्या आतंकवाद अब राजनीतिक हथियार बन गया है?
क्या इस हमले का मकसद चुनावी माहौल खराब करना था?
देश की राजनीति में आतंकवाद का क्या रोल है?

-: MEDIA ने सवाल क्यों नहीं पूछे?

हमले के बाद media ने ज्यादा coverage दी ‘Operation Sindoor’ जैसे ऑपरेशन को।
लेकिन हमले के पीड़ितों की कहानी और religious angle पर सवाल कम उठाए गए।
क्या मीडिया भी किसी साजिश का हिस्सा है?
क्या सच को दबाने की कोशिश हो रही है?

-: सुरक्षा एजेंसियों की भूमिका और जवाबदेही

इतना बड़ा हमला होने के बाद भी security agencies की प्रतिक्रिया धीमी और अस्पष्ट रही।
क्या उन्हें सही intelligence मिली थी?
क्या इन agencies ने पूरी तैयारी नहीं की?
क्या हमें सच पता चलेगा कि कौन-से lapses थे?

-: Conclusion

क्या पहलगाम अब सुरक्षित है?

हमले के बाद पहलगाम और आसपास के इलाकों में सुरक्षा बढ़ा दी गई है, लेकिन जब तक हमलावर पकड़े नहीं जाते, तब तक लोग पूरी तरह से आश्वस्त नहीं हैं।

क्या हमलावरों को लोकल support मिला था?

Yes, ये possibility strong है. 180 km दूर LOC से आकर किसी heavily guarded area में हमला कर देना बिना local help के मुश्किल है. कई बार आतंकी गांववालों या sleeper cells से support लेते हैं — खाना, रहने की जगह या रास्ता बताने तक।

हमले के बाद media ने angle क्यों बदल दिया?

Media ने religious targeting और intelligence failure को ज़्यादा cover नहीं किया। Instead, focus डाला peace appeals और ops पर। शायद political pressure, image control या secular image बनाए रखने के लिए ये किया गया।

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