📰 मध्य प्रदेश में वेतन घोटाला: क्या है पूरा सच?

🔍 प्रस्तावना

मध्य प्रदेश एक बार फिर सुर्खियों में है, इस बार वजह है सरकारी वेतन प्रणाली में हुआ एक संभावित घोटाला। हाल ही में उजागर हुए इस मामले में लगभग 50,000 ऐसे सरकारी कर्मचारी पाए गए हैं जिनके पेरोल कोड सिस्टम में सक्रिय हैं, लेकिन उन्हें पिछले 6 महीनों से वेतन नहीं मिला। इससे राज्य के खजाने में लगभग ₹230 करोड़ की राशि फंसी हुई बताई जा रही है।

यह मामला केवल आर्थिक ही नहीं, बल्कि प्रशासनिक और राजनीतिक रूप से भी गंभीर होता जा रहा है। आइए जानते हैं इस घोटाले का पूरा सच।

📊 घोटाले की शुरुआत कैसे हुई?

23 मई 2025 को कोष एवं लेखा आयुक्त (Commissioner Treasury & Accounts – CTA) ने सभी विभागों को एक पत्र भेजा। इस पत्र में कहा गया कि सभी Drawing & Disbursing Officers (DDOs) उन कर्मचारियों की सूची भेजें जिन्हें 6 महीने से वेतन नहीं मिला है।

शुरुआती जांच में सामने आया कि लगभग 50,000 कर्मचारियों के नाम पेरोल सिस्टम में दर्ज हैं, लेकिन उनके नाम पर कोई वेतन नहीं निकाला गया। यह संख्या चौंकाने वाली थी और इसी से भूत कर्मचारी (Ghost Employees) शब्द चर्चा में आया।

⚠️ क्या यह सिर्फ तकनीकी गड़बड़ी है?

राज्य सरकार की तरफ से दावा किया जा रहा है कि यह कोई घोटाला नहीं बल्कि एक तकनीकी त्रुटि हो सकती है। उनके अनुसार, यह पूरी प्रक्रिया एक डेटा सत्यापन अभियान (Data Validation Exercise) का हिस्सा है।

वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा ने कहा कि, “हर साल इस तरह के रिव्यू होते हैं ताकि कोई भी फर्जी एंट्री सिस्टम में बनी न रहे। इस बार संख्या अधिक है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि घोटाला हुआ है। जांच पूरी होने दीजिए।”

🗣️ विपक्ष के गंभीर आरोप

जहां सरकार इसे एक सामान्य प्रक्रिया बता रही है, वहीं विपक्ष खासकर कांग्रेस पार्टी इस पर गंभीर सवाल उठा रही है।

कांग्रेस नेता जीतू पटवारी ने कहा,

“यह ₹230 करोड़ का मामला नहीं है। अगर 50,000 कोड सक्रिय हैं, तो कुल घोटाला ₹12,000 करोड़ तक हो सकता है। यह सुनियोजित भ्रष्टाचार है और हम इसकी CBI जांच की मांग करते हैं।”

उनका यह बयान सोशल मीडिया और विपक्षी खेमों में जोर पकड़ चुका है, जिससे मामला और गरमा गया है।

🧾 प्रशासन की अगली कार्रवाई

CTA ने सभी DDOs को 15 दिनों के भीतर पूर्ण रिपोर्ट देने का आदेश दिया है। इसके बाद ये स्पष्ट होगा कि कौन से कर्मचारी असल में कार्यरत हैं और किनका डेटा सिस्टम में गलती या धोखे से बना हुआ है।

यदि यह केवल प्रशासनिक चूक है, तो सिस्टम को अपडेट कर लिया जाएगा। लेकिन अगर जानबूझकर फर्जी एंट्री की गई हैं, तो यह मामला एक बड़ा घोटाला बन सकता है।

📌 जनता का विश्वास दांव पर

मध्य प्रदेश की जनता पहले से ही महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों से जूझ रही है। ऐसे में इस प्रकार के वेतन घोटाले की खबरें प्रशासन की विश्वसनीयता पर सीधा सवाल उठाती हैं।

यदि रिपोर्ट में गड़बड़ी साबित होती है तो यह प्रदेश सरकार के लिए एक बड़ा झटका हो सकता है।

🔚 निष्कर्ष

मध्य प्रदेश में हुआ यह वेतन घोटाला चाहे तकनीकी गड़बड़ी हो या सुनियोजित भ्रष्टाचार, यह एक गंभीर प्रशासनिक संकट है। जांच जारी है और 15 दिनों के भीतर स्थिति स्पष्ट हो जाएगी।

अगर यह मामला सही साबित होता है, तो यह सिर्फ पैसे की बर्बादी नहीं, बल्कि जनता के भरोसे की चोरी होगी। समय आ गया है कि पारदर्शिता और जवाबदेही को प्राथमिकता दी जाए।

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