सोचिए, जिस इंसान ने तिरंगे को गर्व से 24 साल तक अंतरराष्ट्रीय मैदानों में लहराया, जिसने करोड़ों भारतीयों को क्रिकेट से जोड़कर एक भावना दी, जिसके बल्ले की गूंज से दुनिया झूम उठी — उस सचिन तेंदुलकर के नाम पर बस एक पैविलियन स्टैंड?
और दूसरी ओर, नरेंद्र मोदी, जो राजनीति में सक्रिय हैं, जिनका खेल से सीधा कोई लेना-देना नहीं रहा, उनके नाम पर बना है पूरा का पूरा अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम। ये कैसा संतुलन है?

क्या ये सम्मान का सही बंटवारा है?
सचिन ने अपनी मेहनत, पसीने और संकल्प से देश को एक नई पहचान दी। क्रिकेट उनके लिए धर्म था, और उन्होंने उसे पूजा की तरह निभाया। क्या एक “सिर्फ स्टैंड” उनके योगदान के लिए पर्याप्त है?
दूसरी ओर, मोदी जी के नाम पर बना “Narendra Modi Stadium” ये सवाल खड़ा करता है कि क्या अब देश में सम्मान योग्यता से नहीं, सत्ता से मिलता है?
क्या ये सिर्फ राजनीति है?
सच्चाई यही है कि आज खेल और संस्कृति जैसे क्षेत्र भी राजनीति की छाया से अछूते नहीं रहे। ये सिर्फ एक नामकरण नहीं, बल्कि एक मैसेज है — कि सत्ता आपके नाम को कहाँ तक ले जा सकती है, और कर्मयोगी चाहे जितना बड़ा हो, अगर वो सत्ता में नहीं है, तो उसकी उपलब्धियों को सीमित करके दिखाया जा सकता है।

आख़िर में सवाल यही है:
क्या ये नया भारत है जहाँ नाम बड़ा होना चाहिए या काम?
क्या जनता सिर्फ “मूर्तियों” की पूजा करती रहेगी, या असल नायकों को उनका हक़ दिलाएगी?
सचिन तेंदुलकर के नाम पर एक पूरा स्टेडियम क्यों नहीं हो सकता?
ये सवाल हर उस भारतीय को खुद से पूछना चाहिए जिसे लगता है कि सम्मान काम का होना चाहिए, चेहरा या पार्टी का नहीं।