लाड़ली बहना योजना के खिलाफ एक नजर: क्या यह महिला सशक्तिकरण है या सिर्फ वोट बैंक की राजनीति?

🔍 प्रस्तावना

“लाड़ली बहना योजना” मध्य प्रदेश सरकार द्वारा चलाई गई एक महत्वाकांक्षी योजना है, जिसका उद्देश्य राज्य की महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाना है। इस योजना के तहत पात्र महिलाओं को हर महीने ₹1000 से लेकर ₹1250 तक की आर्थिक सहायता दी जाती है। लेकिन क्या यह वास्तव में महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रहा है या यह केवल एक वोट बैंक की राजनीति है? इस लेख में हम इसी पर विचार करेंगे।


⚖️ योजना की आलोचना: क्यों है यह आपत्तिजनक?

1. सिर्फ नकद देना कोई समाधान नहीं

सिर्फ ₹1000-₹1250 की सहायता देकर यह मान लेना कि महिलाएं आत्मनिर्भर हो जाएँगी, एक भ्रामक सोच है। न ही यह राशि महंगाई के दौर में कोई ठोस राहत देती है, न ही इससे महिलाओं को शिक्षा, कौशल या रोजगार का मौका मिलता है।

2. राजकोष पर बढ़ता बोझ

मध्य प्रदेश जैसे राज्य के पास पहले से ही सीमित संसाधन हैं। इस योजना में हर महीने हज़ारों करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं। यह पैसा अगर शिक्षा, स्वास्थ्य या महिला उद्यमिता पर लगाया जाता तो लंबी अवधि में ज़्यादा प्रभावी परिणाम मिल सकते थे।

3. वोट बैंक की राजनीति का साधन

विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले इस योजना की शुरुआत करना संदेह उत्पन्न करता है। क्या सरकार का उद्देश्य वास्तव में महिला सशक्तिकरण है या केवल वोट खींचना?

4. लाभार्थियों का चयन प्रक्रिया अस्पष्ट

कई ग्रामीण क्षेत्रों से शिकायतें आई हैं कि पात्र महिलाएं योजना से वंचित रह गईं जबकि कुछ अपात्र लोगों को लाभ मिल रहा है। पारदर्शिता की कमी और राजनीतिक हस्तक्षेप योजना की विश्वसनीयता को कमजोर बनाता है।


🔍 तुलना: क्या हैं बेहतर विकल्प?

योजना का प्रकारप्रभाव
कौशल विकास योजनामहिलाओं को प्रशिक्षित कर स्वरोजगार में मदद
महिला स्टार्टअप फंडिंगउद्यमशील महिलाओं को आर्थिक सहायता
स्वास्थ्य और पोषण कार्यक्रममातृ मृत्यु दर व कुपोषण में कमी
शिक्षा में निवेशलड़कियों को बेहतर भविष्य की दिशा में प्रेरित करता है

🤔 सामाजिक प्रभाव

इस योजना से लघुकालिक वित्तीय राहत तो मिल रही है, लेकिन कई परिवारों में महिलाएं इसे अपना हक नहीं बल्कि सरकार की ‘भीख’ मान रही हैं। इससे उनकी आत्मनिर्भरता पर चोट पहुँचती है और एक निर्भर मानसिकता का विकास होता है।


✍️ निष्कर्ष

“लाड़ली बहना योजना” की मंशा चाहे अच्छी हो, लेकिन इसके कार्यान्वयन और दृष्टिकोण पर गंभीर प्रश्न खड़े होते हैं। सरकार को चाहिए कि वह महिलाओं को सिर्फ उपभोक्ता नहीं, बल्कि निर्माता और नेतृत्वकर्ता के रूप में देखे। नकद देने से ज़्यादा ज़रूरी है — शिक्षा, स्वास्थ्य और आत्मनिर्भरता के अवसर देना।


📢 सुझाव

  • योजना को रोजगार आधारित बनाना चाहिए, जिसमें महिलाएं कुछ घंटे का प्रशिक्षण लेकर कार्य करें और बदले में मानदेय प्राप्त करें।
  • डिजिटल प्रशिक्षण, ऑनलाइन मार्केटिंग स्किल्स या कृषि आधारित लघु उद्योगों में महिलाओं को प्रशिक्षित करने का अभियान शुरू किया जाए।
  • लाभार्थी चयन में पारदर्शिता और पंचायतों की भागीदारी सुनिश्चित की जाए।

क्या आपकी राय भी इस योजना को लेकर अलग है? नीचे कमेंट में बताएं या हमें लिखें!

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